सोनल कैलोग
सूचना के अधिकार का बनना देश और मीडिया के लिए अब तक का सबसे उत्कृष्ट कार्य रहा है। यह शासन में पारदर्शिता और जवाबदेयता लाया है। मीडिया और जन सामन्य को इसने सरकार से उनके कार्यों और उन पर किए गए खर्चों के बारे में सवाल पूछने का हक दिया है। सरकार से कुछ भी पूछने का हक दिया है।
मैनें शुरूआत से सूचना के अधिकार को कवर किया है इसलिए मैंने इसे शुरूआती अवस्था से वर्तमान अवस्था तक जब यह तीन वर्ष पूरे कर चुका है, ठीक से देखा है। इसका विस्तार अभी भी जारी है और जनता के बीच इसकी जागरूकता को श्रेय तमाम गैर सरकारी संगठनों और कार्यकर्ताओं को जाता है, जिनकी भूमिका इस कानून को बनाने में भी अहम रही थी।
सूचना के अधिकार को इस्तेमाल करने के मेरे व्यक्तिगत अनुभव काफी अच्छे रहे हैं। कानून के तहत मैंने जितनी भी सूचना मांगी है, उनके केवल एक को छोड़कर सभी का जवाब मिला है। मैंने सबसे पहले योजना आयोग से इसके उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलुवालिया के बारे में प्रश्न पूछे। मैंने पूछा था कि उन्होंने कितनी विदेश यात्राएं की हैं, उनका भुगतान किसने किया, यदि सरकार ने यात्राओं को भुगतान किया है तो इन यात्राओं पर कितना खर्च हुआ। मैंने उन अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के नामों की जानकारी भी मांगी थी जिसमें अहलुवालिया सदस्य हैं।
एक माह के भीतर मुझे साफ और विस्तृत जवाब मिल गया। प्राप्त जानकारी के आधार पर मैंने अपने अखबार के पहले पेज के लिए स्टोरी लिखी। मैं यह भी बताना चाहूंगी कि योजना आयोग के लोक सूचना अधिकारी ने मुझे अहलुवालिया से मिलने को भी कहा। वह जानना चाहते थे कि मुझे यह सूचनाएं क्यों चाहिए। लेकिन जब उन्हें पता चला कि मैं एक पत्रकार हूं तो वे बिल्कुल दोस्ताना हो गए। मुझे यह पता नहीं चला यदि में पत्रकार न होती तो मुझसे क्या जानना चाहते?
एक अन्य बार मैंने प्रधानमंत्री कार्यालय से सूचना मांगी। कानून के तहत प्रधानमंत्री कार्यालय में आवेदन दाखिल करने की प्रक्रिया काफी अच्छी है। यहां भी मुझे 30 दिन की तय समय सीमा के भीतर जवाब विस्तारपूर्वक मिल गया।
पत्रकार होने के नाते मेरी समस्या प्रतीक्षा की अवधि है। खासकर उस वक्त जब लोक सूचना अधिकारी से जवाब नहीं मिलता। उस वक्त फोलो अप की समस्त प्रक्रिया जिसमें प्रथम अपील और द्वितीय अपील शामिल है, एक पत्रकार के लिए काफी थकाऊ होता है क्योंकि उसे हर वक्त नई कहानियां चाहिए होती हैं।
अधिकतर स्थानों से जहां मैंने सूचना के लिए आवेदन दिया, वहां से सूचना प्राप्त हुईं हैं। समस्त सरकारी विभागों में सूचना के अधिकार के आवेदन प्राप्त करने के लिए मूल आधरभूत संरचना अपनी जगह है, लेकिन एक मामले में मुझे मांगी गई सूचना का एक हिस्सा देने से मना कर दिया गया। मैंने आगे अपील इसलिए नहीं की क्योंकि इससे स्टोरी करने में काफी देर हो जाती, इसलिए जितनी सूचनाएं मिलीं थीं उनसे की मैंने स्टोरी लिख दी।
मैंने दो आवेदन सिविल एविएशन के डायरेक्टरेट जनरल के यहां जमा किए। जहां प्रवेश द्वार पर आवेदन स्वीकार किए गए लेकिन फीस जमा करने के मामले में उनसे थोड़ी बहस हुई। दोनों आवेदनों के जवाब से मैंने अपने अखबार एशियन एज के लिए दो स्टोरी लिखीं जो अखबार के पहले पेज पर छपीं।
मैनें सूचना के अधिकार की जितनी स्टोरी की हैं उनमें अधिकांश गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा विभिन्न सरकारी विभागों से प्राप्त सूचनाओं पर आधरित हैं। मैंने पाया है कि जिन लोगों ने सूचना के अधिकार को एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया है और सरकारी अधिकारी को अपने कर्तव्यों जैसे पासपोर्ट, राशन कार्ड बनाने, नरेगा एवं अन्य सरकारी योजनाओं के पालन के लिए विवश किया है। जवाबदेयता और पारदर्शिता के इसी उद्देश्य के लिए इस कानून को लाया भी गया।
(लेखिका एशियन एज में वरिष्ठ संवाददाता हैं)
RTI Bahut Jaroore Hai.
जवाब देंहटाएंGhar Ka Vaidya