(डॉ0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर)
इलाहाबाद हाईकोर्ट, उत्तर प्रदेश की लखनऊ पीठ ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि मुख्यमंत्री विवेकाधीन कोष से एक लाख रुपये से अधिक की धनराशि प्राप्त लाभार्थियों के बारे में जानकारी सूचना का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत दी जा सकती है। पीठ ने अपने फैसले में यह भी कहा कि मुख्यमन्त्री विवेकाधीन कोष वास्तव में जनता का कोष है। ऎसी स्थिति में जनता को यह जानने का हक़ है कि इस कोष से किसकी सहायता की जा रही है। जनहित में यह जानकारी देने में कोई बाधा नहीं है। न्यायमूर्ति श्री प्रदीपकांत और न्यायमूर्ति श्री श्रीनारायण शुक्ल की खंडपीठ ने यह फैसला जन सूचना अधिकारी की ओर से दायर याचिका को खारिज करते हुए सुनाया।
मुख्यमन्त्री विवेकाधीन कोष से लाभार्थियों की सूची देने के सम्बन्ध में यह फैसला उत्तर-प्रदेश कांग्रेस कमेटी के मुख्य प्रवक्ता अखिलेश प्रताप सिंह द्वारा सूचना अधिकार अधिनियम के अंतर्गत मांगी गई सूचना से उत्पन्न मामले से सम्बंधित था। प्रदेश कांग्रेस कमेटी के मुख्य प्रवक्ता अखिलेश प्रताप सिंह ने दिनांक 12 जून 2007 को सूचना का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत मुख्यमंत्री कार्यालय से इस सम्बन्ध में सूचना मांगी कि दिनांक 28 अगस्त 2003 से 31 मार्च 2007 तक की अवधि में मुख्यमंत्री विवेकाधीन कोष से एक लाख रुपये से अधिक की धनराशि पाने वाले व्यक्तियों की सूची उपलब्ध कराई जाए।
मुख्यमंत्री कार्यालय ने अखिलेश प्रताप सिंह के आवेदन-पात्र को दिनांक 19 जुलाई 2007 को अन्तिम रूप से निस्तारित करते हुए वांछित सूचना उपलब्ध कराने से इनकार कर दिया। कार्यालय के जन सूचना अधिकारी ने सूचना का अधिकार अधिनियम की विविध धाराओं का जिक्र करते हुए इस आवेदन की सूचना को देने से इनकार किया था। मुख्यमंत्री कार्यालय से सूचना प्राप्ति की अस्वीकृति के पश्चात् अखिलेश ने सूचना प्राप्ति हेतु राज्य सूचना आयोग के समक्ष अपील की। मामले की सुनवाई करने के पश्चात् दिनांक 12 दिसम्बर 2007 को आयोग द्बारा मुख्यमंत्री कार्यालय को आदेश दिया गया कि आवेदनकर्ता को वांछित सूचना उपलब्ध करा दी जाए।
आयोग द्वारा आदेश पारित किए जाने के बाद अखिलेश सिंह के आवेदन पर पुनर्विचार करते हुए मुख्यमंत्री कार्यालय से दिनांक 12 जनवरी 2008 को एक पत्र अखिलेश को भेजा गया। इस पत्र के माध्यम से अखिलेश को 336 पृष्ठों की सूचना देने के लिए 15 रुपये प्रति पृष्ठ की दर से 5040 रुपये जमा करने को कहा गया। अखिलेश द्वारा इस पत्र के प्रत्युत्तर में दिनांक 18 जनवरी 2008 को आयोग में पुनः अपील की, जिसमें उन्हों ने अधिनियम की धारा 7 की उपधारा 6 का उल्लेख किया। इस धारा के अनुसार 30 दिन के भीतर ही सूचना उपलब्ध कराने की दशा में ही छाया-प्रति का शुल्क लिया जा सकता है। 30 दिन की समयावधि बीत जाने के पश्चात् सूचना (छाया-प्रति) निःशुल्क प्रदान की जाती है। इस धारा के आधार पर अखिलेश सिंह ने सूचना की छाया-प्रति निःशुल्क दिए जाने की अपील की। मामले की सुनवाई के पश्चात तुंरत ही मुख्यमंत्री कार्यालय को आदेशित किया गया कि वह सूचना उपलब्ध कराये। इस आदेश के बाद मुख्यमंत्री कार्यालय के जन सूचना अधिकारी ने राज्य सूचना आयोग से इस आदेश पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया।
मामले की पुनः सुनवाई करते हुए सूचना आयोग ने दिनांक 15 फरवरी 2008 को अन्तिम रूप से मुख्यमंत्री कार्यालय को आदेश दिया कि मुख्यमंत्री विवेकाधीन कोष से एक लाख रुपये से अधिक की धनराशि प्राप्त करने वाले लाभार्थियों की सूची अखिलेश सिंह को प्रदान की जाए।
आयोग द्वारा इस पूरे मामले में मुख्यमंत्री कार्यालय को तीन बार आदेश दिए गए. मुख्यमन्त्री कार्यालय के जन सूचना अधिकारी द्वारा आयोग द्वारा दिए गए इन तीनों आदेशों ( दिनांक 12 दिसम्बर 2007, दिनांक 12 जनवरी 2008 तथा दिनांक 15 फरवरी 2008 को दिए गए उक्त आदेशों) को चुनौती देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ में एक याचिका दायर की गई। न्यायलय ने पूरे मामले की सुनवाई के पश्चात् यह याचिका खारिज करते हुए मुख्यमंत्री विवेकाधीन कोष से एक लाख रुपये से अधिक की धनराशि प्राप्त करने वाले लाभार्थियों की जानकारी जनहित में देने का आदेश मुख्यमंत्री कार्यालय को दिया। अखिलेश प्रताप सिंह के अधिवक्ता सी0 बी0 पाण्डेय ने बताया कि न्यायलय ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि इसमें किसी तरह की 'मेरिट' नहीं है और यह सूची उपलब्ध कराने में किसी तरह की बाधा नहीं है। जनता के धन से बने मुख्यमंत्री विवेकाधीन कोष से एक लाख रुपये से अधिक की धनराशि प्राप्त करने वाले लाभार्थियों की सूची जनहित में देने का आदेश न्यायलय द्वारा सरकार (मुख्यमंत्री कार्यालय) को दिया गया।
bade bhai sengar ji sapream jay shri ram.mai dhirendra pratap singh apne vicharo ke awatantra sampresan ki vajah se bhadas se nikala gaya. aap ka blog dekha accha laga aap ijajat denge to is pr likhooga.apka dhirendra pratap singh.new delhi
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