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शनिवार, 13 सितंबर 2008

छत्तीसगढ़ जैसी ही तो काली नहीं यूपीएससी की सच्चाई

सूचना के अधिकार के इस्तेमाल से जो सच्चाई छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग की 2003 की परीक्षा के दस्तावेजों से निकलकर आई उस पर सिर्फ़ शर्मिंदा हुआ जा सकता है।
राज्य लोक सेवा आयोग की परीक्षा और साक्षात्कार में अपने उत्तरों से आश्वस्त कुछ उम्मीदवारों का चयन नहीं हुआ तो उन्होंने सूचना के अधिकार के तहत उत्तर पुस्तिकाएं दिखाने की मांग की। राज्य लोक सेवा आयोग ने तमाम तरह की दलीलें देकर इससे बचने की कोशिश की लेकिन बड़ी संख्या में आंदोलन के चलते जब बात विधान मंडल तक पहुंच गई और वहां से भी सख्ती हुई तो सच सामने आया। राज्य लोक सेवा आयोग को उत्तर-पुस्तिकाएं दिखलानी पड़ीं।
उत्तर-पुस्तिकाओं के सामने आते ही मानो गड़बिड़यों का पिंडारा फूट पड़ा। जो कुछ सामने आया उसे इन पृष्ठों में समेटना संभव नहीं है लेकिन इसकी कुछ बानगी देखिए-

स्केलिंग में धांधली
- राजेश कुमार (रोल नम्बर 105188 वर्ष २००३) को सांिख्यकी की 300 अंक की परीक्षा में स्केलिंग के बाद 304 अंक दे दिए गए
- एक अन्य अभ्यर्थी ग्रजेस प्रताप सिंह (रोल नम्बर ६६१३६) को अपराध शास्त्र में 233 अंक मिले थे जिसे स्केलिंग के बाद शून्य कर दिया गया
- एक अन्य चयनित छात्र राजू सिंह चौहान ने (रोल नम्बर ३११०६) के वैकल्पिक विषय में 182 अंक प्राप्त किए थे जिसे स्केलिंग के बाद 188 कर दिया गया
- इसी तरह दो अन्य छात्रों जिन्होंने सांिख्यकीय में 235-235 अंक प्राप्त किए थे, स्केलिंग के बाद उनके अंक शून्य कर दिए गए
- मानव शास्त्र विषय के छ: विद्यार्थियों (16834, 102564, 40912, 77632, 97129, १०२५२६) ने 300 में प्रत्येक ने 200 अंक प्राप्त किए थे, जिसे स्केलिंग के बाद क्रमश: 170, 210, 205, 196, 196 और 239 कर दिया गया।

कट ऑफ़ मार्क्स
- वर्षा डोगरे का चयन कर्ट ऑफ़ मार्क्स से अधिक (१२९०) अंक प्राप्त करने के बाद भी नहीं किया गया। जबकि उससे नीचे 1274, 1273, 1247 अंक प्राप्त करने वाले कई अभ्यार्थियों का चयन कर लिया गया।
- इस परीक्षा में टॉपर रही थीं पदमिनी भोई, पदमिनी ने कुल 1481 अंक प्राप्त किए थे, लेकिन स्केलिंग के बाद इनके अंक 1501 कर दिए गए।
- दूसरी तरफ़ कुंदन कुमार जिन्होंने कुल 1523 अंक प्राप्त किए थे, उनका स्कोर स्केलिंग के बाद कुल 1314 कर दिया गया। और आखिरकार कुंदन का किसी पद पर चयन नहीं हो सका।

मूल्यांकन में धांधली
- कुल 300 अंक के एक पेपर में 60-60 अंक के पांच प्रश्न थे। एक उत्तर-पुस्तिका में केवल चार प्रश्नों के उत्तर दिए गए थे, लेकिन हरेक प्रश्न का मूल्यांकन कर 75-75 अंक दे दिए गए। इस तरह चार उत्तर देने वाले परीक्षार्थी को जिसे अधिकतम 240 अंक मिल सकते थे, सीधे-सीधे 300 अंक दे दिए गए।
- इसी विषय के मूल्यांकन में एक अन्य उत्तर-पुस्तिका के 5 सवालों में दो प्रश्न को अधिकतम 50-50 अंक और शेष तीन को अधिकतम 60-60 अंक के आधार पर जांचा गया है
- एक अन्य विषय की उत्तर-पुस्तिका में सही जवाब लिखने पर 20 अंक में से 10 अंक मिले जबकि गलत जवाब देने वाले परीक्षार्थी को 20 में से 13 अंक दिए गए हैं।
- न्यायायिक परीक्षा में एक परीक्षार्थी कर पूरी उत्तर-पुस्तिका में जांच के बावजूद बीच के दो पृष्ठ(10,११) का मूल्यांकन ही नहीं किया गया।

इन तथ्यों के आधार पर बिलासपुर उच्च न्यायालय में रिट दायर की गई तो आयोग के अèयक्ष अशोक दरवाड़ी ने माना कि परीक्षा में बड़ी मात्रा में गड़बड़ी हुई है। जिस पर अब उच्चतम न्यायालय में केस चल रहा है और अèयक्ष फिलहाल जमानत पर हैं जबकि आयोग के एक अन्य सदस्य अमोद सिंह फरार हैं।


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