न्यायाधीश सूचना के अधिकार के दायरे में आ सकते हैं या नहीं, इस विवादास्पद मुद्दे पर केन्द्रीय सूचना आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के अधिकारियों व कोमिक और प्रशिक्षण विभाग से उनके विचार पूछे हैं । आयोग ने अलग-अलग नोटिस जारी कर न्यायालय और विभाग के अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वह अपने विचार 11 जुलाई को होने वाली फुल बैंच सुनवाई से पहले प्रस्तुत करें। आयोग ने न्यायाधीषों की संपत्तियों को सार्वजनिक किए जाने या ना किए जाने पर इनके विचार पूछे हैं।
आयोग का यह निर्देश दिल्ली निवासी सुभाष चन्द्र अग्रवाल द्वारा दायर की गई अपील के जवाब में आया है। श्री अग्रवाल ने अपील में पूछा था कि क्या सुप्रीम कोर्ट ने अपने पास किये हुए प्रस्ताव पालन किया है जिसमें सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के सभी जजों को अपनी संपत्ति का ब्यौरा संबंधित मुख्य न्यायधीष को नियमित अंतराल पर भेजना था।
यह प्रस्ताव मई 1997 को 22 न्यायधीषों की उपस्थिति में पारित किया गया था, जिसकी अध्यक्षता मुख्य न्यायाधीश ने की थी। इस बैठक में न्यायधीष वर्मा ने उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के सभी जजों को नियुक्ति के बाद निश्चित समय सीमा के भीतर अपनी और अपने संबंधियों की संपत्तियों और निवेश का ब्यौरा देने की बात कही। जजों की बैठक में पास किए गए इस प्रस्ताव में कोई कानूनी बाध्यता नहीं है।
गौरतलब है कि मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन ने यह कहकर विवाद खड़ा कर दिया था कि न्यायाधीश सूचना के अधिकार के दायरे में नहीं आते। उनके इस बयान का लोकसभा अध्यक्ष और पार्लियामेंट्री स्टेडिंग कमिटी ऑन लॉ एंड जिस्टस ने आलोचना की थी।
आयोग का यह निर्देश दिल्ली निवासी सुभाष चन्द्र अग्रवाल द्वारा दायर की गई अपील के जवाब में आया है। श्री अग्रवाल ने अपील में पूछा था कि क्या सुप्रीम कोर्ट ने अपने पास किये हुए प्रस्ताव पालन किया है जिसमें सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के सभी जजों को अपनी संपत्ति का ब्यौरा संबंधित मुख्य न्यायधीष को नियमित अंतराल पर भेजना था।
यह प्रस्ताव मई 1997 को 22 न्यायधीषों की उपस्थिति में पारित किया गया था, जिसकी अध्यक्षता मुख्य न्यायाधीश ने की थी। इस बैठक में न्यायधीष वर्मा ने उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के सभी जजों को नियुक्ति के बाद निश्चित समय सीमा के भीतर अपनी और अपने संबंधियों की संपत्तियों और निवेश का ब्यौरा देने की बात कही। जजों की बैठक में पास किए गए इस प्रस्ताव में कोई कानूनी बाध्यता नहीं है।
गौरतलब है कि मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन ने यह कहकर विवाद खड़ा कर दिया था कि न्यायाधीश सूचना के अधिकार के दायरे में नहीं आते। उनके इस बयान का लोकसभा अध्यक्ष और पार्लियामेंट्री स्टेडिंग कमिटी ऑन लॉ एंड जिस्टस ने आलोचना की थी।
If im in the situation of the owner of this blog. I dont know how to post this kind of topic. he has a nice idea.
जवाब देंहटाएंDamu pa kmu to?.. Nano ni klase blog man?
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