मध्य प्रदेश राज्य राज्य सूचना आयोग ने मुरैना जिला न्यायालय अधीक्षक एवं लोक सूचना अधिकारी एस आर अनगरे पर 25 हजार का जुर्माना लगाया है। आयोग ने यह निर्णय मुरैना की तहसील कैलारस में वकालत करने वाले आवेदक लज्जाराम पाण्डेय की द्वितीय अपील की सुनवाई के बाद दिया। आयोग ने जिला न्यायालय को आदेश दिया कि लज्जाराम द्वारा मांगी गई सूचनाएं 15 दिनों के भीतर उपलब्ध कराईं जाएं।
लज्जाराम ने 4 जनवरी 2007 में मुरैना जिला न्यायालय के लोक सूचना अधिकारी एस आर अनगरे के समक्ष अपना आवेदन प्रस्तुत किया था। लेकिन अनगरे ने अपने आप को लोक सूचना अधिकारी होने की बात से इंकार कर दिया और आरटीआई आवेदन लेने से मना कर दिया। तत्पश्चात श्री लज्जाराम ने अपीलीय अधिकारी जिला एवं सत्र न्यायाधीश बी डी राठी के समक्ष अपना आवेदन प्रस्तुत किया।
बी डी राठी को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने सूचनाधिकार के तहत अपीलीय अधिकारी नियुक्त किया था। उच्च न्यायालय ने मुरैना न्यायालय अधीक्षक एस आर अनगरे को लोक सूचना अधिकारी के पद पर भी नियुक्त किया था। आरटीआई को जो आवेदन अनगरे को लेना चाहिए उसे अपीलीय अधिकारी ने स्वीकार किया और अपनी जिम्मेदारियों के निर्वाह में लापरवाही दिखाई। आवेदन के साथ 10 रूपये का नॉन ज्युडिशियल स्टाम्ट संलग्न था, लेकिन इसके बावजूद आवेदक से 10 रूपये आवेदन शुल्क के रूप में वसूल लिए गए।
इस मामले की विचित्र बात यह है कि आवेदक ने अपीलीय अधिकारी बी डी राठी पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के बारे में जवाब मांगा था। आवेदक ने राठी द्वारा की गई कारवाईयों के दस्तावेजों को मांग की थी। खुद पर लगे आरोपों का आवेदन उन्होंने स्वीकार किया और फैसला भी सुना दिया। आवेदन पर किसी प्रकार की कारवाई के बिना कानून की धारा 8 का हवाला देते हुए आवेदन निरस्त कर दिया गया।
आवेदन निरस्त होने के बाद लज्जाराम के सामने विचित्र और असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो गई। असमंजस यह था कि अब वह प्रथम अपील कहां दायर करें। गौरतलब है कि प्रथम अपील नियमों के अनुसार अपीलीय अधिकारी बी डी राठी के यहां होनी थी। लेकिन उन्होंने आवेदन स्वीकार किया था और उसे रद्द भी कर दिया था। ऐसी स्थिति में आवेदक ने प्रथम अपील मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के ग्वालियर और जबलपुर के अपीलीय अधिकारियों के पास भेजी। बाद में मामला मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयोग गया।
सूचना आयोग लगभग एक साल बाद मामले की सुनवाई की और मुरैना जिला न्यायालय के विरूद्ध निर्णय दिया। न्यायालय को आदेश दिया गया कि वह 15 दिनों के भीतर आवेदक द्वारा मांगी गई सभी सूचनाएं उपलब्ध कराए। इसके अलावा मुरैना जिला न्यायालय के लोक सूचना अधिकारी एस आर अनगरे को दोषी मानते हुए 25 हजार रूपये का जुर्माना भी लगाया गया। आयोग के निर्णय के करीब 50 दिनों बाद आवेदक को सूचनाएं उपलब्ध करा दी गईं।
लज्जाराम ने 4 जनवरी 2007 में मुरैना जिला न्यायालय के लोक सूचना अधिकारी एस आर अनगरे के समक्ष अपना आवेदन प्रस्तुत किया था। लेकिन अनगरे ने अपने आप को लोक सूचना अधिकारी होने की बात से इंकार कर दिया और आरटीआई आवेदन लेने से मना कर दिया। तत्पश्चात श्री लज्जाराम ने अपीलीय अधिकारी जिला एवं सत्र न्यायाधीश बी डी राठी के समक्ष अपना आवेदन प्रस्तुत किया।
बी डी राठी को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने सूचनाधिकार के तहत अपीलीय अधिकारी नियुक्त किया था। उच्च न्यायालय ने मुरैना न्यायालय अधीक्षक एस आर अनगरे को लोक सूचना अधिकारी के पद पर भी नियुक्त किया था। आरटीआई को जो आवेदन अनगरे को लेना चाहिए उसे अपीलीय अधिकारी ने स्वीकार किया और अपनी जिम्मेदारियों के निर्वाह में लापरवाही दिखाई। आवेदन के साथ 10 रूपये का नॉन ज्युडिशियल स्टाम्ट संलग्न था, लेकिन इसके बावजूद आवेदक से 10 रूपये आवेदन शुल्क के रूप में वसूल लिए गए।
इस मामले की विचित्र बात यह है कि आवेदक ने अपीलीय अधिकारी बी डी राठी पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के बारे में जवाब मांगा था। आवेदक ने राठी द्वारा की गई कारवाईयों के दस्तावेजों को मांग की थी। खुद पर लगे आरोपों का आवेदन उन्होंने स्वीकार किया और फैसला भी सुना दिया। आवेदन पर किसी प्रकार की कारवाई के बिना कानून की धारा 8 का हवाला देते हुए आवेदन निरस्त कर दिया गया।
आवेदन निरस्त होने के बाद लज्जाराम के सामने विचित्र और असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो गई। असमंजस यह था कि अब वह प्रथम अपील कहां दायर करें। गौरतलब है कि प्रथम अपील नियमों के अनुसार अपीलीय अधिकारी बी डी राठी के यहां होनी थी। लेकिन उन्होंने आवेदन स्वीकार किया था और उसे रद्द भी कर दिया था। ऐसी स्थिति में आवेदक ने प्रथम अपील मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के ग्वालियर और जबलपुर के अपीलीय अधिकारियों के पास भेजी। बाद में मामला मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयोग गया।
सूचना आयोग लगभग एक साल बाद मामले की सुनवाई की और मुरैना जिला न्यायालय के विरूद्ध निर्णय दिया। न्यायालय को आदेश दिया गया कि वह 15 दिनों के भीतर आवेदक द्वारा मांगी गई सभी सूचनाएं उपलब्ध कराए। इसके अलावा मुरैना जिला न्यायालय के लोक सूचना अधिकारी एस आर अनगरे को दोषी मानते हुए 25 हजार रूपये का जुर्माना भी लगाया गया। आयोग के निर्णय के करीब 50 दिनों बाद आवेदक को सूचनाएं उपलब्ध करा दी गईं।
ye sach hai ki adhikari ani lapurwahi se was nahi aate.ye mahasay kanunvid the amm admi ki kya halat hote honge?
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