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शुक्रवार, 27 जून 2008

मांगी सूचना मिली जेल

आजादी के साठ वर्ष बाद भी नौकरशाही शासकवादी मानसिकता से उभर नहीं पाई है। नौकरशाह सरकारी नौकर जैसा कम और शासक जैसा व्यवहार ज्यादा करते है। कुछ ऐसा ही दिखता है बिहार में, जहॉ इन नौकरशाहों से आम जनता सवाल पूछे यह इनसे बरदाश्त नहीं हो पा रहा है। यही कारण है कि राज्य में इस कानून के तहत सूचना मांगनें वालों को झूठे और संगीन आरोपों में फंसाकर जैल में बंद करने की अनेक घटनाएं सामने आई हैं।
बिहार के शिव प्रकाश राय पर बक्सर के पूर्व जिलाधिकारी ने राय पर 25 हजार रूपये प्रतिमाह रंगदारी टैक्स मांगने का आरोप लगाया। झूठे आरोप में उन्हें जेल में बंद कर दिया गया और 29 दिनों के बाद रिहा किया गया। राय का दोष सिर्फ इतना था कि उन्होंने सूचना के अधिकार के तहत इंदिरा आवास योजना का लाभ पाने वाले लोगों का ब्यौरा मांगा था।
एक अन्य मामले में नालंदा जिले के पुरषोत्तम प्रसाद को भूमि सुधारों की जानकारी मांगने पर मिट्टी का तेल चुराने के झूठे आरोप में फंसा दिया गया। सेना से रिटायर हो चुके चन्द्रदीप सिंह की कहानी इनसे भी बुरी है। उन्हें मानेर में एक महिला से बलात्कार की कोशिश के मामले में फंसाया गया क्योंकि चन्द्रदीप ने पुलिस से अपने पुत्र और पुत्री की हत्या की जांच की जानकारी मांगी थी। एक निर्माणाधीन ओवरब्रिज की जानकारी मांगने पर जयप्रकाश को सरकारी सेवकों को काम न करने देने और निर्माण कार्य में बाधा पहुंचाने का आरोप लगा।
नौकरशाहों का यह रवैया सिद्ध करता है कि वे सूचना के कानून के माध्यम से पूछे गए सवालों का जवाब देना अपनी शान के खिलाफ समझते हैं। सदियों से चली आ रही शासकवादी मानसिकता से वे आज भी उबर नहीं पाए हैं।

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