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शनिवार, 21 जून 2008

बच्चों की बहुआयामी योजना पर संकट के बादल

सरकार कानून और योजनाएं तो बहुत-सी बना देती है, लेकिन जब उनके क्रियान्वयन की बारी आती है तो वह अक्सर असफल सिद्ध होती है। इसी कारण अनेक कल्याणकारी योजनाओं या तो अधर में अटक जाती हैं या अपना उद्देश्य पूरा किए बिना ही समाप्त हो जाती हैं। ऐसी ही एक योजना है इंटीग्रेटिड चाइल्ड प्रोटेक्शन स्कीम जो खत्म होने की कगार पर है। सरकारी उपेक्षा के कारण बच्चों की इस बहुआयामी योजना पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं।

महिला और बाल विकास मंत्रालय ने इंटीग्रेटिड चाइल्ड प्रोटेक्शन स्कीम के क्रियान्वयन के लिए 90 करोड रूपये की मंजूरी दी थी। बच्चों के अधिकारों और पुनर्वास के लिए बनाई गई इस योजना के क्रियांवन के लिए हर राज्य में एक चाइल्ड प्रोटेक्शन यूनिट के गठन का प्रावधान है। हर यूनिट एक एजेन्सी के समान कार्य करती है जिसमें पुलिस, राज्य, न्यायालय और गैर सरकारी संगठनों के सदस्य शामिल होते हैं, लेकिन अजीब विडंबना है कि अब किसी राज्य ने इस यूनिट का गठन नहीं किया है।

यह तथ्य सामने आए हैं महिला और बाल विकास मंत्रालय में दायर एक आरटीआई की अर्जी के जवाब से। एक एनजीओ के राज मंगल प्रसाद ने यह अर्जी दायर कर मंत्रालय से पूछा था कि कितने राज्य में चाइल्ड प्रोटेक्शन यूनिट कार्य कर रही हैं। जवाब में मंत्रालय ने कहा है कि वह इस प्रकार की सूचनाओं के रिकार्ड्स नहीं रखता।


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